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  Sayari (Poems)
मैं दीवाना अब कैसे ठहर जाँउ
तेरी दुनिया का मैं इक सरफरोशी

मैं मतवाला अब कैसे रुक जाँउ

तेरे बन्दो को समझा मेरे मोला

मैं दीवाना अब कैसे ठहर जाँउ



चंद शेर तेरे नाम

सिसकियाँ मजबूरियों कि निकलती है अफ़सानों में
जों बयां होते नही, रह जाते हैं बाकि निशा
मिलता है खंडहर एक ख्वाब ए महल का
जब कुरेदता हू पन्ने अतीत के विरानो में
--------------------------------------------- साहिल
सर्द हवाए सब कुछ बहा ले गई,
छोडा भी तो खोखले इन्सान छोड़ गई,
----------------------------------------------- साहिल
नही वक्त इतना कि हम किसी को याद करे
वक्त मिलता है तो दूंद्ता हूँ , वो साहिल कहा गुम है,
----------------------------------------------- साहिल

अश्क रंजोगम , दीवानापन वो छोड़ आए
हम उस गली में बची जिन्दगी छोड़ आए
तड़पते हुए दो दिलो को बिलखते छोड़ आए
हाँ, एक बेबस जिन्दगी का हल निकाल लाये
----------------------------------------------- साहिल


वक्त ने दी है, खामोशी तेरे नाम कि
जब वक्त मिलता है तो दूंड़ता हूँ इस शोर में

----------------------------------------------- साहिल

पेचीदा लब्जो कि जंग में
एक लब्ज जीत गया
नाकाम कोशिशो के बाद
नाम "हालत" रख क दिया
----------------------------------------------- साहिल


गुजर जिन सडको पर कि
शाम को जहा शोर होता है
क्यूं न कोई आता है वहां
जब रात को सन्नाटा होता है
----------------------------------------------- साहिल



गुमराह दीवारों कि आवारगी
नूर ए नज़र थे ये परदे
बनाया था एक आशियाँ मैंने
हवादान बनकर रह गया
(बेस्ट शेर ऑफ़ माय life)
----------------------------------------------- साहिल


गुंजाइश हो या न हो
लेकिन ताबुतो के ढेर में
एक कब्र कोने होगी
,
और तारीखे ए बदल में
एक नुमाइश जरूर होगी
,
तब हम भी देखेंगे,
तमाशा बाशिंदों के
बस किरदार बदले होंगे

हालत फिर से होंगे यूँही
फिर उठेंगे वही सवाल
बस आपके फेशेले बदले होंगे
----------------------------------------------- साहिल

एक जख्म कि कसक का मातम
हमने इतना मायना यारो
कि जिन्दगी है कसक में गुजरी
मरहम लगाना भूल गए
----------------------------------------------- साहिल


रोकर जो टूटे उसे दिल कहते है
हस कर जो फिर जुड़े उसे इन्सान कहते है
----------------------------------------------- साहिल

वे भी थके
वे भी टूटे
पर एक खास बात
वे कभी नही रुके
वे कभी नही रुके

जिन्दगी

एक बार यूं रस्ते से गुजर ।
आए मुझे कुछ चहरे नजर ।
कुछ रोते तो कुछ जो हसते ।
कुछ मस्तो से मौज जो करते ।

यूं मन में आया विचार ।
क्यों ना जिन्दगी पर करू विचार ।

पास टीला था , बैठ गया
यूं गहराई में उतरने लगा।
फिर सिर के बल भी उलझ गए ।
तर्क वितर्क से झगड़ पड़े।
झगड़ झगड़ कर सुलझ गए ।
और राज यूं खुल पड़े
टैब चहरे पर आई मुस्कान ।
थोडी सी हुई मुझे थाकन ।

फिर आत्मा को भी टटोला
टैब परिभाषा में यूं बोला

" सबकी इक राह होती है,
थोडी कठिन वो होती है ,
बस समय से साथ चलना होता है
इसी का नाम जिंदगानी होता है "

अब नामो की परवाह नही

 
चंद हादसों से गुजर
कि अन्जामो कि अब परवाह नही
बनाया है शक्त उनने मुझको
कि अब रहो कि परवाह नही
चलने को राहे
कि मंजिले अनेक है
गुमनामी के इस अंधरे में
कि अन नामो कि परवाह नही।

चिराग - ऐ - महफिल

 
किश्त दर किश्त, गम
मिलता है सलीको पे,
हर वक्त बस
नाम बदल जाता है ।
तमन्ना ऐ आरजू
जो दफ्न मेरे सीने में,
उनको याद करने में
हर साल गुजर जाता है।
देखता हू आएने में
तो वो नजरें चुराता है।
ख्वाबो की परवाज़ पे
हवा - ऐ - रुख बदल जाता है।
फिर छटपटाई सांसें
हर शख्स छीन जाता है।
मेरी चिराग - ऐ - महफिल में,
बस वक्त गुजर जाता है

तू त्वरित चल

 
आगे बडो, आगे बडो
चलते रहो, चलते रहो
अदद प्रेरणा-वश पथ के कांटे
चूम कर चलो , चूम कर चलो

दृढ विश्वास रत मंजिल के पथ
दोड कर चलो , दोड कर चलो
लक्ष्य साध मंजिल का आज
भेदते चलो भेदते चलो ।

कर्मशील युग-पुरूष बन
मन उत्साह , तरंग बन
समर्पित लक्ष्य , स्वप्रेरणा बन
आगे बडो , चलते रहो।


दिखा आज उस संसार को
हौसले उस आस्मा के।
न थक, न बैठ, न निराश हो
अब वेग नही , अब त्वरित कर।

क्योंकि

तोडी है सीमाये तुने आदि अनंत काल से
लांघा है तुने कभी पूर्ण इस बह्मंद को
मलिन दूमिल स्मर्ति , बधित पंख तू निकल ले
जान अपने आप को , युग-पुरूष अपने को पहचान ले

आज मंजिल पास है
और वक्त की पुकार है
तू त्वरित चल , तू त्वरित चल , तू त्वरित चल


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